हर साल जब दीवाली का त्योहार करीब आता है, तो पूरे देश में एक नई ऊर्जा फैल जाती है। घरों, दफ्तरों और गलियों में रौनक बढ़ जाती है। हर व्यक्ति अपने घर की सफाई में जुट जाता है - पुराना सामान निकालना, कोनों की धूल झाड़ना, दीवारें धोना और सब कुछ चमकाना। हवा में ताज़ा रंग और पूजा की खुशबू घुल जाती है।
यह सफाई केवल स्वच्छता के लिए नहीं होती, बल्कि इसके पीछे एक गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अर्थ छिपा होता है। दीवाली से पहले घर की सफाई का अर्थ है — जीवन से अंधकार, नकारात्मकता और ठहराव को हटाना। जब हम अपने आसपास की गंदगी दूर करते हैं, तो सकारात्मक ऊर्जा और लक्ष्मी का स्वागत करते हैं।
हम बर्तन चमकाते हैं, फर्नीचर साफ़ करते हैं, गाड़ी धोते हैं, और हर कोना चमकाते हैं – लेकिन क्या कभी आपने सोचा है… “क्या हमारे बॉडी को भी ऐसे ही सफाई की सख़्त ज़रूरत है?”
घर और गाड़ी तो साफ दिखाई देते हैं, लेकिन हमारा बॉडी - जिसमें हम हर दिन रहते हैं - अंदर ही अंदर टॉक्सिन जमा करता रहता है। धीरे-धीरे ये टॉक्सिन्स हमारे अंगों के कामकाज, हमारी त्वचा और हमारे मूड पर असर डालते हैं। और सबसे दिलचस्प बात यह है कि दीवाली के समय यह टॉक्सिन्स की मात्रा सबसे ज़्यादा बढ़ जाती है!
त्योहारों का मौसम और शरीर में टॉक्सिन्स का जमाव
दीवाली का मतलब है स्वादिष्ट पकवान, मिठाइयाँ और जम के सेलब्रेशन! हम तले हुए पकवान, लड्डू, बर्फी, जलेबी, चकली, समोसा और ढेरों मिठाइयाँ खाते हैं। इन स्वादिष्ट चीज़ों का आनंद तो होता है, लेकिन इनमें मैदा, चीनी, घी, रंग और भर के प्रिज़र्वेटिव जैसे तत्व होते हैं जो हमारे लिवर और पाचन तंत्र पर बोझ डालते हैं।
इसके अलावा, त्योहार के दौरान हम देर रात तक जागते हैं, कम नींद लेते हैं, व्यायाम छोड़ देते हैं और बाहर का खाना ज़्यादा खाते हैं। ऊपर से पटाखों का धुआँ और प्रदूषण - ये सब मिलकर हमारे शरीर में टॉक्सिन्स की भारी मात्रा बढ़ा देते हैं।
हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने का काम करता है, पर जब टॉक्सिन्स की मात्रा बहुत ज़्यादा हो जाती है, तो शरीर की यह डीटॉक्स सिस्टम कमजोर पड़ जाता है। परिणामस्वरूप ये टॉक्सिन्स खून और टिश्यूज़ में जमा होने लगते हैं। इसके लक्षण हैं :
>> थकान या कमजोरी
>> पेट फूलना या गैस
>> त्वचा की समस्यायें, दाग धब्बे या मुहाँसे
>> मुख दुर्गंध, पसीने की बदबू
>> सिरदर्द या बदन दर्द
>> रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी
>> चिड़चिड़ापन या ध्यान की कमी
>> वज़न बढ़ना या कम न होना
ये सारे संकेत बताते हैं कि अब समय है शरीर की सफाई का - यानी क्लेंज़िंग का! दीवाली की सफाई का असली अर्थ - आपके बॉडी की क्लिंजिंग
दीवाली का त्योहार केवल बाहर की सफाई का नहीं, बल्कि अंदर की सफाई का प्रतीक भी है। यह प्रकाश का त्योहार है — जो अंधकार (बीमारी, आलस्य, नकारात्मकता) को हटाकर उजाला (ज्ञान, स्वास्थ्य, सकारात्मकता) लाता है।
हमारे पूर्वज मानते थे कि जिस घर, मन और शरीर में स्वच्छता और संतुलन है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। आज के प्रदूषित, तनावपूर्ण और रासायनिक जीवन में यह आंतरिक शुद्धि पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। इसीलिए, अब समय है “घर की सफाई” के साथ-साथ “बॉडी की सफाई” को भी दीवाली परंपरा का हिस्सा बनाने का। और इसके लिए सबसे आसान, सुरक्षित और असरदार तरीका है — डॉ पीयूष सक्सेना की क्लेंज़िंग थेरेपी
क्या है क्लेंज़िंग थेरेपी?
क्लेंज़िंग थेरेपी एक प्राकृतिक और सुरक्षित प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से शरीर में जमा टॉक्सिन्स को सिर्फ़ 16 घंटों में बाहर निकाल दिया जाता है। इसमें न तो लम्बा उपवास है, ना ही कोई हानिकारक डायट प्लान - यह हमारे बॉडी के नेचुरल क्लिंजिंग सिस्टम को सपोर्ट करता है ताकि लिवर, किडनी, लंग, त्वचा और आँतें ठीक से अपना काम कर सकें।
इस थेरेपी के माध्यम से शरीर में जमा टॉक्सिन्स को सक्रिय कर, उन्हें सुरक्षित तरीके से फ़्लश आउट कर दिया जाता है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। थेरेपी के बाद शरीर बिल्कुल हल्का, तरोताज़ा और ऊर्जावान महसूस करता है।
दीवाली के बाद क्लिंजिंग थेरेपी क्यों है ज़रूरी?
त्योहार के बाद आपका शरीर बिल्कुल उसी तरह थक चुका होता है जैसे आपका घर पार्टी के बाद बिखरा हुआ होता है। लिवर पर दबाव होता है, पाचन तंत्र सुस्त हो जाता है और ऊर्जा घट जाती है। यही समय होता है जब शरीर को रीसेट करने की ज़रूरत होती है। कारण साफ हैं:
1. त्योहार में ज़्यादा खाना-पीना होने से शरीर में टॉक्सिन्स जमा हो जाते हैं।
2. नींद और दिनचर्या बिगड़ने से मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है।
3. लिवर और किडनी पर ज़्यादा बोझ पड़ता है।
4. त्वचा और ऊर्जा में निखार खत्म हो जाता है।
5. आने वाले मौसम में बीमारियाँ बढ़ती हैं, इसलिए पहले से शरीर को मजबूत बनाना ज़रूरी है।
क्लिंजिंग थेरेपी इन सभी समस्याओं को हल करती है और बॉडी में फिर से स्वास्थ्य संतुलन लाती है।
क्लिंजिंग थेरेपी के मुख्य फ़ायदे
1. टॉक्सिन्स की सफाई:
शरीर से हानिकारक केमिकल्स, प्रिज़रवेटिव्स, ड्रग्स और अतिरिक्त शुगर बाहर निकल जाते हैं।
2. ऊर्जा में वृद्धि:
शरीर साफ होने पर कोशिकाओं को अधिक ऑक्सीजन और पोषण मिलता है, जिससे ऊर्जा बढ़ती है।
3. पाचन सुधार:
गैस, एसिडिटी और कब्ज़ जैसी समस्याएँ कम होती हैं।
4. त्वचा में निखार:
रक्त शुद्ध होने से चेहरे पर चमक लौट आती है।
5. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है:
स्वच्छ शरीर बीमारियों से बेहतर तरीके से लड़ सकता है।
6. मेंटल क्लैरिटी :
टॉक्सिन्स हटने से मन हल्का और एकाग्र होता है।
7. बीमारियों की रोकथाम:
मोटापा, मधुमेह, थकान और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों पर नियंत्रण में मदद मिलती है।
शरीर को क्लिंजिंग की ज़रूरत आख़िर क्यों होती है?
कुछ लोग कहते हैं कि शरीर खुद ही टॉक्सिन्स निकाल देता है, फिर सफाई की क्या ज़रूरत? असल में, आज के प्रदूषित माहौल और असंतुलित जीवनशैली ने शरीर पर इतना बोझ डाल दिया है कि उसकी नेचुरल क्लिंजिंग सिस्टम उतनी प्रभावी नहीं रह गई है।
हम रोज़ जहरीली हवा में सांस लेते हैं, रासायनिक खाद्य पदार्थ खाते हैं, तनाव झेलते हैं और नींद पूरी नहीं करते। इस वजह से शरीर को एक्स्टर्नल हेल्प की आवश्यकता होती है - और यही काम करती है क्लिंजिंग थेरेपी।
यह शरीर की प्राकृतिक सफाई प्रणाली को मजबूत बनाकर उसे सहायता देती है, ताकि वह गहराई से जमा टॉक्सिन्स को बाहर निकाल सके।
क्लिंजिंग थेरेपी है आपके शरीर के लिए ‘लक्ष्मी पूजन’. जैसे हम लक्ष्मी जी का स्वागत करने के लिए घर साफ करते हैं, वैसे ही क्लिंजिंग थेरेपी हमारे शरीर में स्वास्थ्य, स्फूर्ति और सौंदर्य का स्वागत करती है। यह हमारे शरीर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है - जो हमें रोज़ चलने, काम करने और जीने की शक्ति देता है।
जब आप शरीर को क्लीन करते हैं तो -
>> मन शांत होता है
>> ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है
>> भावनात्मक संतुलन आता है
>> और जीवन में नई ताजगी आती है
क्लिंजिंग थेरेपी से पहले कुछ तैयारियाँ :
1. त्योहार के बाद हल्का भोजन करें।
2. पर्याप्त पानी और नारियल पानी पिएँ।
3. आराम करें और पूरी नींद लें।
4. सकारात्मक सोच रखें।
5. हमेशा किसी सर्टिफ़ायड क्लिंजिंग थेरेपी प्रैक्टिशनर के मार्गदर्शन में थेरेपी कराएँ।
6. हमेशा ऑथेंटिक थेरेपी मटीरीयल का ही इस्तेमाल करें
7. थेरेपी के लिए वेल्दीलाइफ़ कैम्प में जायें जहाँ आपको मिलता है 14 तरह की क्लिंजिंग थेरेपी वो भी एक्स्पर्ट की देख रेख में – ऑथेंटिक मटीरीयल के साथ।
क्लेंज़िंग थेरेपी के बाद का अनुभव :
ज्यादातर लोग थेरेपी के बाद कहते हैं — “शरीर एकदम हल्का लग रहा है!” एनर्जी लेवल, पाचन, स्लीप क्वालिटी और मनोदशा में भी अद्भुत सुधार होता है। बॉडी के सर्केडीयन रिधम में भी ज़बरदस्त सुधार होता है। यह बिल्कुल ऐसा है जैसे आपने अपने शरीर का रीसेट बटन दबा दिया हो।
त्योहार के बाद जब आपका घर, मंदिर और कपड़े सब नए हो जाते हैं - तो अपने बॉडी को भी एक नया जीवन दीजिए।
नई परंपरा – दिवाली के तुरंत बाद बॉडी की क्लिंजिंग थेरेपी
हमारे त्योहार हमेशा संतुलन सिखाते हैं - आनंद के साथ संयम, उत्सव के साथ आत्मचिंतन। पुराने समय में लोग त्योहारों के बाद उपवास या शुद्धिकरण आहार करते थे। यही बात आज क्लिंजिंग थेरेपी के रूप में फिर जीवित हो रही है। तो बनाइए इसे अपने परिवार की नई परंपरा - “दीवाली से पहले घर साफ़ करें, और दीवाली के बाद अपना बॉडी क्लिंज करें।”
समापन विचार
दीवाली प्रकाश का त्योहार है - अंधकार पर प्रकाश की जीत। लेकिन असली प्रकाश तभी चमकता है जब आपके बॉडी और माइंड से टॉक्सिन्स बाहर हो जाएँ। आपका बॉडी आपकी आत्मा का घर है। इसकी सफाई, क्लिंजिंग, देखभाल और सम्मान ही इसकी असली पूजा है। तो इस दीवाली, जब आपके घर की रोशनी चमके - आपका शरीर भी उतना ही स्वच्छ और उज्ज्वल हो।
क्लिंजिंग थेरेपी अपनाइए - और अपने जीवन में स्वास्थ्य, ऊर्जा और आनंद का दीप जलाइए!
- डॉ राजेश सिंह
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